Sunday 27 September 2015

Car names acrostics

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Thursday 24 September 2015

महाराष्ट्राचे जिल्हे

महाराष्ट्रातील जिल्हाविशेष:
→महाराष्ट्रातील कापसाचे शेत- जळगाव
→महाराष्ट्रातील कापसाचा जिल्हा-
यवतमाळ
→संत्र्याचा जिल्हा- नागपूर
→महाराष्ट्रातील कापसाची बाजारपेठ-
अमरावती
→जंगलांचा जिल्हा- गडचिरोली
→महाराष्ट्रातील केळीच्या बागा- जळगाव
→साखर कारखान्यांचा जिल्हा- अहमदनगर
→महाराष्ट्रातील ज्वारीचे कोठार-
सोलापूर
→महाराष्ट्रातील गुळाचा जिल्हा-
कोल्हापूर
→कुस्तीगिरांचा जिल्हा- कोल्हापूर
→लेण्यांचा जिल्हा- औरंगाबाद
→भारताचे प्रवेशद्वार- मुंबई
→भारताची आर्थिक राजधानी - मुंबई
→महाराष्ट्रातील घनदाट लोकवस्तीचा
जिल्हा- मुंबई शहर
→महाराष्ट्रातील तांदळाचे कोठार- रायगड
→महाराष्ट्रातील मिठागरांचा जिल्हा-
रायगड
→मुंबईची परसबाग - नाशिक
→महाराष्ट्रातील देशभक्त व समाजसेवकांचा
जिल्हा- रत्नागिरी
→मुंबईचा गवळीवाडा- नाशिक
→द्राक्षांचा जिल्हा- नाशिक
→आदिवासींचा जिल्हा- नंदूरबार
→अती दक्षिणेकडचा जिल्हा- सिंधुदुर्ग
→पर्यटन जिल्हा - सिंधुदुर्ग
→कलाकारांचा जिल्हा- सांगली
→दुधा तुपाचा जिल्हा- धुळे
→तलावांचा जिल्हा- गोंदिया
→विद्येचे माहेरघर- पुणे
→सैनिकांचा जिल्हा- सातारा

आरत्या

आरत्या - AARATI
श्री गणपतीची आरती ( Ganapatichi Aarati )

सुखकर्ता दु:खहर्ता वार्ता विघ्नाची | नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जायची | सर्वांग सुंदर उटी शेंदुराची | कंठी झळके माळ मुक्ताफळाची | जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ती | दर्शनमात्रे मन:कामना पुरती जय देव जय देव || धृ || रत्नखचित फार तुज गौरीकुमरा | चान्दांची उटी कुंकुमकेशरा | हिरेजडीत मुगुट शोभती बरा | रुणझुणती नुपुरे चरणी घागरिया || जय || २ || लंबोदर पितांबर फणीवरबंधना | सरळ तोंड वक्रतुंड त्रिनयना | दास रामाचा वाट पाहे सदना | संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवरवंदना | जयदेव जयदेव जय मंगलमुर्ती | दर्शनमात्रे मन:कामना पुरती || ३ ||

श्री गणपतीची आरती ( Ganapatichi Aarati )

नाना परिमल दुर्वा शेंदूर शमीपत्रे | लाडू मोदक अन्ने परिपूरित पात्रे | ऐसे पूजन केल्या बीजाक्षरमंत्रे | अष्टही सिद्धी नवनिधी देसी क्षणमात्रे || १ || जयदेव जयदेव जय मंगलमुर्ती तुझे गुण वर्णाया मज कैची स्फूर्ती || जय || धृ || तुझे ध्यान निरंतर जे कोणी करिती | त्यांची सकलही पापे विघ्नेही हरती | वाजी वारण शिबिका सेवक सुत युवती | सर्वही पावुनी अंती भवसागर तरती || जयदेव || २ || शरणागत सर्वस्वे भजती तव चरणी | कीर्ती तयांची राहे जोवरी शशि - तरणी | त्रेलोक्यी ते विजयी अदभूत हे करणी | गोसावीनंदन रात नाम स्मरणी | जयदेव जय || ३ ||

श्री गणपतीची आरती ( Ganapatichi Aarati )

शेंदूर लाल चढायो अच्छा गज मुखको | दोंदिल लाल विराजे सुत गौरीहरको | हाथ लिये गुडलड्डू साई सुरवरको | महिमा काहे न जाय लागत हुं पदको || १ || जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता | धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता || धृ || अष्टौ सिद्धी दासी संकटको बैरी | विघ्नविनाशक मंगल मुरत अधिकारी | कोटीसुरजप्रकाश ऐसी छबी तेरी | गंडस्थलमदमस्तक झुले शशिबिहारी || जय || २ || भावभगतसे कोई शरणागत आवे | संतत संपत सबही भरपूर पावे | ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे | गोसावीवंदन निशिदिन गुण गावे | जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता || धन्य || ३ ||

श्री शंकराची आरती ( Shanakarachi Aarati )

लवथवती विक्राळा ब्रम्हांडी माळा | वीषे कंठी कला त्रिनेत्री ज्वाळा | लावण्यसुंदर मस्तकी बाळा | तेथुनिया जल निर्मळ वाहे झुळझुळा || १ || जय देव जय देव जय श्रीशंकरा | आरती ओवाळू तुज कर्पूरगौरा || धृ || कर्पुरगौरा भोळा नयनी विशाळा | अर्धांगी पार्वती सुमनांच्या माळा | विभूतीचे उधळण शितिकंठ निळा | ऐसा शंकर शोभे उमावेल्हाळा | जय देव || २ || देवी दैत्यी सागर मंथन पै केले | त्यामाजी अवचित हळहळ जें उठिले | तें त्वां असुरपणे प्राशन केलें | नीळकंठ नाम प्रसिद्ध झाले | जय || ३ || व्याघ्रांबर फणिवरधर सुंदर मदनारी | पंचानन मनमोहन मुनिजनसुखकारी | शतकोटीचे बीज वाचे उच्चारी | रघुकुळटिळक रामदासाअंतरी || जय देव || ४ ||

श्री देवीची आरती ( Devichi Aarati / DeviDurgechi Aarati )

दुर्गे दुर्घट भारी तुजवीण संसारी | अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी | वारी वारी जन्ममरणाते वारी | हरी पडलो आता संकट निवारी || १ || जय देवी जय देवी महिषसूरमथिनी | सुरवरईश्वरवरदे तारक संजीवनी जय देवी जय देवी || धृ || त्रिभुवन भुवनी पाहता तुजऐसी नाही | चारी श्रमले परंतु न बोलवे काही | साही विवाद करिता पडिले प्रवाही | तें तू भक्तालागी पावसी लवलाही || जय || २ || प्रसन्नवदने प्रसन्न होसी निजदासा | क्लेशापासुनि सोडावि तोडी भवपाषा अंबे तुजवाचून कोण पुरविल आशा | नरहरी तल्लिन झाला पदपंकजलेशा | जय देवी जय देवी जय महिषासुरमथिनी | सुरवरईश्वरवरदे तारक || ३ ||

श्री दत्ताची आरती ( Dattachi Aarati )

त्रिगुणात्मक त्रिमूर्ती दत्त हा जाणा | त्रिगुणी अवतार त्रिलोक्यराणा | नेति नेति शब्द नये अनुमाना | सुरवरमुनिजन योगी समाधी न ये ध्याना || १ || जय देव जय देव जय श्रीगुरुदत्ता | आरती ओवाळीता हरली भवचिंता जय देव जय देव || धृ || सबाह्य अभ्यंतरी तू एक दत्त | अभाग्यासी कैची कळेल हे मात | पराही परतली तेथे कैचा हा हेत | जन्ममरणाचा पुरलासे अंत || जय || २ || दत्त येउनिया उभा ठाकला भावे सांष्टागेसी प्रणिपात केला | प्रसन्न होऊनी आशीर्वाद दिधला | जन्ममरणाचा फेरा चुकविला || जय || ३ || दत्त दत्त ऐसे लागले ध्यान | हारपले मन झाले उन्मन | मी तू झाली बोळवण | एका जनार्दनी श्रीदत्तध्यान || जय देव || ४ ||

श्री विठोबाची आरती ( Vithobachi Aarati )

युगे अठ्ठावीस विटेवरी उभा | वामांगी रखुमाई दिसे दिव्य शोभा | पुंडलिकाचे भेटी परब्रम्ह आले गा | चरणी वाहे भीमा उद्धरी जगा || १ || जय देव जय देव जय पांडुरंगा || रखुमाईवल्लभा राहीच्या वल्लभा पावे जिवलगा जय देव जय देव || धृ || तुळसीमाळा गळा कर ठेवुनी कटी | कांसे पितांबर कस्तुरी लल्लाटी | देव सुरवर नित्य येती भेटी | गरुड हनुमंत पुढे उभे राहती || जय || २ || धन्य वेणुनाद अनुक्षेत्रपाळा | सुवर्णाची कमळे वनमाळा गळा | राई रखुमाई राणीया सकळा | ओवाळिती राजा विठोबा सावळा || जय || ३ || ओवाळू आरत्या कुर्वंड्या येती | चंद्रभागेमाजी सोडुनिया देती | दिंड्या पताका वैष्णव नाचती | पंढरीचा महिमा वर्णावा किती || जय || ४ || आषाढी कार्तिकी भक्तजन येती | चंद्रभागेमध्ये स्नाने जें करिती | दर्शनहेळामात्रे तया होय मुक्ती | केशवासी नामदेव भावे ओवाळिती || जय देव जय देव जय || ५ ||

श्री विष्णूची आरती ( Shri Vishnuchi Aarati )

आवडी गंगाजळे देवा न्हाणीले | भक्तीचे भूषण प्रेमासुगंध अर्पिले | अहं हा धूप जाळू श्रीहरीपुढे | जंव जंव धूप जळे | तंव तंव देवा आवडे | रमावल्लमदासे अहं धूप जाळिला | एकारतीचा मग प्रारंभ केला | सोहं हा दीप ओवाळू गोविंदा | समाधी लागली पाहतां मुखारविंदा | हरीख हरीख हातो मुख पाहतां | चाकाटल्या ह्या नारी सर्वही अवस्था | सदभवालागी बहु हा देव भुकेला | रमावल्लभदासे नैवेद्य अर्पिला | फल तांबूल दक्षिणा अर्पीली | तयाउपरी नीरांजने मांडिली || आरती आरती करू गोपाळा | मी तू पण सांडोनी वेळोवेळा || धृ || पंचप्राण पंचज्योती आरती उजळिली | दृश्य हे लोपलें तथा प्रकाशांतळी | आरतीप्रकाशे चंद्र सूर्य लोपलें | सुरवर सकळीक तटस्थ ठेले | देवभक्तपण न दिसे कांही | ऐशापरी दास रमावल्लभ पायीं || आरती ||

नवरात्राची आरती ( Navaratrachi Aarati )

आश्विनशुध्दपक्षी अंबा बैसली सिंहासनी हो | प्रतिपदेपासून घटस्थापना ती करुनी हो | मूलमंत्रजप करुनी भोवते रक्षक ठेवुनी हो | ब्रम्हा विष्णू आईचे पूजन करिती हो || १ || उदो बोला उदो अंबाबाई माउलीचा हो | उदोकारे गर्जती काय महिमा वर्णू तिचा हो || धृ || द्वितीयेचे दिवशी मिळती चौसष्ट योगिनी हो | सकळामध्ये श्रेष्ठ परशुरामाची जननी हो | कस्तुरी मळवट भांगी शेंदूर भरुनी हो | उदोकारे गर्जती सकळ चामुंडा मिळूनी हो | उदो || तृतीयेचे दिवशी अंबे शृंगार मांडीला हो | मळवट पातळ चोळी कंठी हार मुक्ताफळा हो | कंठीची पदके कांसे पितांबर पिवळा हो | अष्टभुजा मिरविती अंबे सुंदर दिसे लीला हो | उदो || ३ || चतुर्थीचे दिवशी विश्वव्यापक जननी हो | उपासका पाहसी अंबे प्रसन्न अंत:करणी हो | पूर्ण कृपे तारिसी जगन्माते मनमोहिनी हो | भक्तांच्या माउली सुर तें येती लोटांगणी हो | उदो || ४ || पंचमीचे दिवशी व्रत तें उपांगललिता हो | अर्ध्यपाद्यपूजने तुजला भवानी स्तविती हो | रात्रीचे समयी करिती जागरण हरिकथा हो | आनंदे प्रेम तें आले सदभावे क्रीडता हो | उदो || ५ || षष्ठीचे दिवशी भक्तां आनंद वर्तला हो | घेउनी दिवट्या हस्ती हर्षे गोंधळ घातला हो | कवडी एक अर्पिता देसी हार मुक्ताफळा हो | जोगवा मांगता प्रसन्न झाली भक्तकुळा हो | उदो || ६ || सप्तमीचे दिवशी सप्तशृंगगडावरी हो | तेथे तू नांदसी भोवती पुष्पे नानापरी हो | जाईजुई शेवंती पूजा रेखियली बरवी हो | भक्त संकटी पडतां झेलुनी घेसी वरचेवरी हो | उदो || ७ || अष्टमीचे दिवशी अष्टभुजा नारायणी हो | सह्याद्रीपर्वती राहिली उभी जगज्जननी हो | मन माझे मोहिले शरण आलो तुजलागुनी हो | स्तनपान देऊनी सुखी केलें अंत:करणी हो | उदो || ८ || नवमीचे दिवशी नवदिवसाचे पारणे हो | सप्तशतीजप होमहवने सदभक्तीकरुनी हो | षड्रस अन्ने नैवेद्यासी अर्पियली भोजनी हो | आचार्य ब्राम्हणा तृप्त केलें कृपेकरुनी हो | उदो || ९ || दशमीच्या दिवशी अंबा निघे सीमोल्लघनी हो | सिंहारूढ करी दारूण शस्त्रे अंबे त्वां घेउनी हो | शुंभनिशुभादिक राक्षसा किती मारिसी रणी हो | विप्रा रामदासा आश्रम दिधला तो चरणी हो | उदो बोला उदो अंबाबाई माउलीचा हो || १० ||

मारुतीची आरती ( Marutichi Aarati )

सत्राणे उड्डाणे हुंकार वदनी | करि डळमळ भूमंडळ सिंधूजळ गगनी || कडाडिले ब्रम्हांड धाक त्रिभुवनी | सुरवर नर निशाचर त्यां झाल्या पळणी || १ || जय देव जय देव जय श्रीहनुमंता | तुमचेनी प्रसादे न भी कृतांता || धृ || दुमदुमले पाताळ उठिला प्रतिशब्द | थरथरला धरणीधर मानिला खेद | कडकडिले पर्वत उद्दगण उच्छेद | रामी रामदासा शक्तीचा शोध || जय || २ ||

श्री कृष्णाची आरती ( Shri Krushnachi Aarati )

ओवाळू आरती मदनगोपाळा | श्यामसुंदर गळा वैजयंतीमाळा || धृ || चरणकमल ज्याचे अति सुकुमार | ध्वजवज्रांकृश ब्रीदाचे तोडर ओवाळू || १ || नाभिकमल ज्याचे ब्रम्हयाचे स्थान | हृदयी पदक शोभे श्रीवत्सलांछन | ओवाळू || २ || मुखकमल पाहतां सुखाचिया कोटी | वेधले मानस हारपली दृष्टी | ओवाळू || ३ || जडित मुगुट ज्याचा देदिप्यमान | तेणे तेजे कोंदले अवघे त्रिभुवन | ओवाळू || ३ || एका जनार्दनी देखियले रूप | रूप पाहतां जाहले अवघे तद्रूप | ओवाळू || ५ ||

श्री ज्ञानदेवाची आरती ( Shri Gyanadevachi Aarati )

आरती ज्ञानराजा | महाकैवल्यतेजा | सेविती साधुसंत || मनु वेधला माझा || आरती || धृ || लोपलें ज्ञान जगी | हित नेणती कोणी | अवतार पांडुरंग | नाम ठेविले ज्ञानी || १ || कनकाचे ताट करी | उभ्या गोपिका नारी | नारद तुंबर हो || साम गायन करी || २ || प्रकट गुह्य बोले | विश्र्व ब्रम्हाची केलें | रामजनार्दनी | पायी मस्तक ठेविले | आरती ज्ञानराजा | महाकैवल्यतेजा || सेविती || ३ ||

श्री एकनाथाची आरती ( Shri Ekanathachi Aarati )

आरती एकनाथा | महाराजा समर्था | त्रिभुवनी तूंचि थोर | जगदगुरू जगन्नाथा || धृ || एकनाथ नाम सार | वेदशास्त्रांचे गूज | संसारदु:ख नाम | महामंत्राचे बीज | आरती || १ || एकनाथ नाम घेतां | सुख वाटले चित्ता | अनंत गोपाळदासा | धणी न पुरे गातां | आरती एकनाथा | महाराजा समर्था || २ ||

श्री तुकारामाची आरती ( Shri Tukaramachi Aarati )

आरती तुकारामा | स्वामी सदगुरूधामा | सच्चिदानंदमूर्ती | पाय दाखवी आम्हा || आरती || धृ || राघवे सागरांत | पाषाण तारिले | तैसे हे तुकोबाचे | अभंग उदकी रक्षिले || आरती || १ || तुकिता तुलनेसी | ब्रम्ह तुकासि आलें | म्हणुनी रामेश्वरे | चरणी मस्तक ठेविले || आरती तुकारामा || २ ||

श्री रामदासाची आरती ( Shri Ramadasachi Aarati )

आरती रामदासा | भक्त विरक्त ईशा | उगवला ज्ञानसूर्य || उजळोनी प्रकाशा || धृ || साक्षात शंकराचा | अवतार मारुती | कलिमाजी तेचि झाली | रामदासाची मूर्ती || १ || वीसही दशकांचा | दासबोध ग्रंथ केला | जडजीवां उद्धरिले नृप शिवासी तारीले || २ || ब्रम्हचर्य व्रत ज्याचे | रामरूप सृष्टी पाहे | कल्याण तिही लोकी | समर्थ सद्गुरुपाय || ३ || आरती रामदासा ||

श्री पांडुरंगाची आरती ( Shri Pandurangachi Aarati )

जय देव जय देव जय पांडुरंगा | आरती ओवाळू भावे जिवलगा || धृ || पंढरीक्षेत्रासी तू अवतरलासी | जगदुद्धारासाठी राया तू फिरसी | भक्तवत्सल खरा तू एक होसी | म्हणुनी शरण आलो तुझे चरणांसी || १ || त्रिगुण परब्रम्ह तुझा अवतार || त्याची काय वर्णू लीला पामर | शेषादिक शिणले त्यां न लागे पार | तेथे कैसा मूढ मी करू विस्तार || २ || देवाधिदेवा तू पंढरीराया | निर्जर मुनिजन घ्याती भावें तंव पायां | तुजसी अर्पण केली आपुली मी काया | शरणागता तारी तू देवराया || ३ || अघटीत लीला करुनी जड मूढ उद्धरिले | कीर्ती ऐकुनी क नी चरणी मी लोळे | चरणप्रसाद मोठा मज हे अनुभवले | तुझ्या भक्तां न लागे चरणांवेगळे | जय देव जय देव जय पांडुरंगा | आरती || ४ ||

आरती जय जय जगदीश हरे ( Aarati Jay Jay Jagadish Hare )

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे | भक्त जनो कें संकट क्षण में दूर करे || ओSम || जो घ्यावे फल पावे दु:ख विनशे मनका | सुख संपती घर आवे कष्ट मिटे तनका || ओSम || मात पिता तुम मेरे शरण गहू किसकी | तुम बिन और न दूजा आस करू किसकी || ओsम || तुम हो पुरण परमात्मा तुम अंतरयामी | पार ब्रम्ह परमेश्वर तुम सबके स्वामी || ओSम || तुम करुणा कें सागर तुम पालन कर्ता | मैं मुरख खल कामी कृपा करि भरता || ओSम || तुम हो एक अगोचर सबके प्राणपती | स्वामी किस विधी मिलू दयामय तुमको मैं कुमति || ॐ || दिन बंधू दुखहर्ता तुम रक्षक मेरे अपने हाथ उठाओ शरण पडा तेरे || ॐ || विषय विकार मिटाओ पापा हरे देवा | श्रद्धा भक्ति बधाओ संतन की देवा || ॐ ||

जय जय श्री शनिदेवाची आरती ( Jay Jay Shri Shanidevachi Aarati )

जय जय श्रीशनिदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा | आरती ओवाळिती | मनोभावे करुनी सेवा || धृ || सूर्यसुता शनीमूर्ती || तुझी अगाध कीर्ती | एक मुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फूर्ती || जय || नवग्रहांमाजी श्रेष्ठ | पराक्रम थोर तुझा | ज्यावरी कृपा करिसी | होय रंकाचा राजा || जय || २ || विक्रमासारीखा हो शककर्ता पुण्यराशी | गर्व धरितां शिक्षा केली | बहु छळियले त्यासी || जय || ३ || शंकराच्या वरदाने | गर्व रावणे केला | साडेसाती येतां त्यासी | समूळ नाशासी नेला || जय || ४ || प्रत्यक्ष गुरुनाथा | चमत्कार दावियेला | नेऊनि शूलापाशी | पुन्हा सन्मान केला || जय || ५ || ऐसे गुण किती गाऊ | धनी न पुरे गातां || कृपा करी दीनावरी | महाराजा समर्था || जय || ६ || दोन्ही कर जोडूनिया रखमां लीन सदा पायीं | प्रसाद हाची मागे | उदयकाळ सौख्य दावी | जय जय श्री शनिदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा || ७ ||

श्री संतोषीमातेची प्रासादिक आरती ( Shri Santoshimatechi Prasadik Aarati )

जय देवी श्रीदेवी संतोषी माते | वंदन भावे माझे तंव पद कमलाते || धृ || श्रीलक्ष्मीदेवी तू श्रीविष्णुपत्नी || पावसी भक्तालागी अति सोप्या यत्नी || जननी विश्वाची तू जीवन चितशक्ती | शरण तुला मी आलो नुरवी आपत्ती || १ || भृगुवारी श्रद्धेने उपास तंव करिती | आंबट कोणी कांही अन्न न सेविती || गूळचण्याचा साधा प्रसाद भक्षिती | मंगल व्हावे म्हणुनी कथा श्रवण करिती || २ || जें कोणी नरनारी व्रत तंव आचरिती | अनन्य भावे तुजला स्मरूनी प्रार्थिती || त्यांच्या हाकेला तू धावूनिया येसी | संतति वैभव कीर्ती धनदौलत देसी || ३ || विश्र्वाधारे माते प्रसन्न तू व्हावे | भवभय हरुनी आम्हा सदैव रक्षावे || मनिची इच्छा व्हावी परिपूर्ण सगळी | म्हणुनी मिलिंदमाधव आरती ओवाळी || ४ ||

गणेश पूजन

आपल्या सर्वांच्या सोईसाठी श्रीगणेशाची पूजा पाठवीत आहे तरी ज्यांच्या कडे गुरूजी उपलब्ध होत नाहीत त्यांना सहजपणे करता येईल अशी श्रीगणेश पूजन पाठवीत आहे........

श्री गणेश प्राणप्रतिष्ठा साहित्य
हळद
कुंकू
अक्षता
गुलाल
अष्टगंध ( चंदन पावडर )
अबीर
सुपारी १०
खारीक५
बदाम५
हळकुंड५
अक्रोड५
ब्लाउज पीस१
कापसाची वस्त्रे (गेजवस्त्र)
जानवी जोड २
पंचा१
तांदूळ
तुळशी बेल दुर्वा
फुले
पत्री
हार१
आंब्याच्या डहाळी
नारळ२
फळे५
विड्याची पाने २५
पंचामृत
कलश२
ताह्मण१
संध्या पळी
पंचपात्र
सुटे रुपये १०
नैवेद्याची तयारी
समई
वाती
निरांजन
कापूर
गणेशाची मूर्ती आदल्या दिवशी आणून ठेवावी.गुरूजी येण्यापूर्वी मूर्ती मखरात ठेवावी,सर्व पूजेचे साहित्य तयार ठेवावे
बसण्या साठी आसन  घ्यावे

पूजेसंबंधिच्या काही सूचना
श्रीगणेशाचे पूजन करताना शुचिर्भूत असावे,घरात वाद विवाद न करता प्रसन्नपणे सर्वांनी एकत्र असावे.पूजा करणारी व्यक्ती यज्ञोपवीत(जानवे) घातलेले असावे. देवास काहीही समर्पण करत असताना ते उजव्या हातानेच वहावे.मूर्ती वर पाणी, पंचामृत, अर्घ्य वाहताना फुलाने किंवा दुर्वांनी वहावे.वडीलधाऱ्यांपैकी एकाने पूजा सांगावी. त्यांच्या पेक्षा लहान व्यक्तीने पूजा करावी

पार्थिवगणेशपूजा प्रारंभ:-
प्रथम कपाळी तिलक धारण करून आचमन करावे देवापुढे पानसुपारीचा विडा ठेवावा देवास नमस्कार करून वडीलधाऱ्यांचे आशीर्वाद घ्यावेत आणि पुजेला प्रारंभ करावा.
खालीलप्रमाणे प्रत्येक देवतेचे स्मरण करून नमस्कार करावा

ॐ श्रीमन्महागणपतये नम:॥
ॐइष्ट देवताभ्यो नमः ||
ॐकुल देवताभ्यो नमः ||
ॐग्राम देवताभ्यो नमः ||
ॐवास्तु देवताभ्यो नमः ||
ॐगुरू देवताभ्यो नम:॥
नंतर हातात अक्षता घेऊन श्रीगणेशाचे मनात स्मरण करावे आणि खालीलप्रमाणे मंत्र म्हणावेत

सुमुखश्च एकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः||
लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः||
धुम्रकेतुर् गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजाननः||
द्वादशैतानि नामानी यःपठेद् शृणुयादपि ||
विद्यारंभे विवाहेच प्रवेशे निर्गमे तथा ||
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ||

अक्षता श्रीगणेशाच्या पायांवर वहाव्यात.नंतर उजव्या हातात दोन पळ्या पाणी घेऊन त्यात गंध अक्षता फुले घेऊन खालीलप्रमाणे संकल्प म्हणावा रिकाम्या जागी आपल्या नाव गोत्राचा उच्चार करावा

श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य..शालिवाहनशके मन्मथ नामसंवत्सरे, दक्षिणायने, वर्षा ऋतौ, भाद्रपद मासे, शुक्लपक्षे, चतुर्थ्यां तिथौ, बृहस्पति वासरे, स्वाती दिवस नक्षत्रे, तुला स्थिते वर्तमाने चंद्रे, सिंह स्थिते श्रीसूर्ये, सिंह स्थिते श्रीदेवगुरौ, शुभपुण्यतिथौ....॥
मम आत्मन: श्रुतिस्मृति-पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थं श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं...........गोत्रोत्पन्नाय ........शर्माणं अहं अस्माकं सकलकुटुंबानां सपरिवाराणां समस्त शुभफल प्राप्त्यर्थं प्रतिवार्षिक विहितं {पार्थिवसिद्धिविनायक} देवता प्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन यथामिलित उपचार द्रव्यै: प्राणप्रतिष्ठापन पूर्वक ध्यानआवाहनादि षोडश उपचार पूजन अहं करिष्ये॥
पाणी ताह्मणात सोडावे. पुन्हा पाणी हातात घेऊन खालीलप्रमाणे उच्चार करावा.
आदौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं महागणपति स्मरणं, शरीर शुद्ध्यर्थं षडंगन्यासं कलश, शंख, घंटा, दीप पूजनं च करिष्ये॥
ताह्मणात पाणी सोडावे.नंतर श्रीगणेशाचे स्मरण करून कलश,शंख,घंटा,दिवा समई यांची पूजा करावी गंध, अक्षता, फुले,हळद कुंकू वहावे

॥प्राणप्रतिष्ठा॥
पुढीलप्रमाणे उच्चार करून मुर्तीच्या नेत्रांना दुर्वांनी तूप लावावे दोन्हीही हातांनी मूर्ती वर छाया करावी

अस्यां मृन्मयमूर्तौ प्राणप्रतिष्ठापने विनियोग:॥
॥ॐ आं -हीं क्रों॥ अं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं अ:॥ क्रों -हीं आं हंस: सोहं॥
अस्यां मूर्तौ १ प्राण २ जीव ३ सर्वेंद्रियाणि वाङ् मन:त्वक् चक्षु श्रोत्र जिव्हा घ्राण पाणि पाद पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा॥
नमस्कार करून उजवा हात मूर्ती वर ठेवावा डावा हात स्वतःच्या हृदयास स्पर्श करून खालीलप्रमाणे उच्चार करावा 
गर्भाधानादि षोडष संस्कार सिद्ध्यर्थं षोडष प्रणवावृती: करिष्ये॥
आणि श्रीगणेशास स्पर्श करून मनात १६वेळा "ॐ" म्हणावे नंतर श्रीगणेशाच्या नेत्रांना तूप लावावे.
ॐअस्यै प्राणा: प्रतिष्ठंतु अस्यै प्राणा:क्षरंतु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥

श्रीगणेशाचे ध्यानं करावे
ॐएकदंतं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुजं।
पाशांकुशधरं देवं ध्यायेत्सिद्धिविनायकं॥

श्रीगणेशाच्या पायांवर अक्षता वहाव्यात 
ॐआवाहयामि विघ्नेश सुरराजार्चितेश्वर।
अनाथनाथ सर्वज्ञ पूजार्थं गणनायक॥
श्रीगणेशास अक्षता वाहून सिंहासन अर्पण करत आहोत अशी कल्पना करावी
ॐनानारत्न समायुक्तं कार्तस्वरविभूषितम्।
आसनं देवदेवेश प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशाच्या चरणांवर दुर्वा किंवा फुलाने पाणी  शिंपावे
ॐपाद्यं गृहाण देवेश सर्वक्षेमसमर्थ भो।
भक्त्या समर्पितं तुभ्यं लोकनाथ नमोस्तु ते॥

श्रीगणेशाच्या चरणांवर गंध फुल अक्षता यांनी युक्त पाणी वहावे
ॐनमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर।
नमस्ते जगदाधार अर्घ्यं न: प्रतिगृह्यताम॥

ताह्मणात ४वेळा पाणी सोडावे
ॐकर्पूरवासितं वारि मंदाकिन्या:समाहृतम्।
आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं हि भक्तित:॥

श्रीगणेशाच्या मूर्तीवर पाणी शिंपावे
ॐगंगादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनया हृतम्।
तोयमेतत्सुखस्पर्शं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशाच्या चरणांवर पंचामृत वहावे
ॐपंचामृत मयोनीतं पयः दधी घृतं मधु
शर्करा सह संयुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्

श्रीगणेशास शुद्धोदक वहावे
ॐश्रीगणेशाय नमः शुद्धोदकं समर्पयामी

श्रीगणेशास अक्षता वहाव्यात
ॐश्रीगणेशाय नमः सुप्रतिष्ठितमस्तु॥

श्रीगणेशास वस्त्रे वहावीत
ॐसर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यताम्।

श्रीगणेशास यज्ञोपवीत वहावे
ॐदेवदेव नमस्तेतु त्राहिमां भवसागरात्।
ब्रह्मसूत्रं सोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर॥

श्रीगणेशास गंध लावावे
ॐश्रीखंडं चंदनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशास अक्षता वहाव्यात ॐअक्षतास्तंडुला:शुभ्रा:कुंकूमेन विराजिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥

श्रीगणेशास हळद वहावी
ॐहरिद्रा स्वर्णवर्णाभा सर्वसौभाग्यदायिनी।
सर्वालंकारमुख्या हि देवि त्वं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीगणेशास कुंकू वहावे ॐहरिद्राचूर्णसंयुक्तं कुंकुमं कामदायकम्।
वस्त्रालंकारणं सर्वं देवि त्वं प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशास शेंदूर वहावा ॐउदितारुणसंकाश जपाकुसुमसंनिभम्।
सीमंतभूषणार्थाय सिंदूरं प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशास गुलाल अबीर वहावे
ॐज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते विश्वरूपिणे।
नानापरिमलद्रव्यं गृहाण परमेश्वर॥

श्रीगणेशास फुले,हार,कंठी,दुर्वा  वहावे
ॐमाल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मया हृतानि पूजार्थं पुष्पाणि प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशाच्या प्रत्येक अवयवांवर अक्षता वहाव्यात
॥अथ अंग पूजा॥
ॐगणेश्वराय नम:-पादौ पूजयामि॥(पाय)
ॐविघ्नराजाय नम:-जानुनी पू०॥(गुडघे)
ॐआखुवाहनाय नम:-ऊरू पू०॥(मांड्या)
ॐहेरंबाय नम:-कटिं पू०॥ (कंबर)
ॐलंबोदराय नम:-उदरं पू०॥ (पोट)
ॐगौरीसुताय नम:-स्तनौ पू०॥(स्तन)
ॐगणनायकाय नम:- हृदयं पू॥(हृदय)
ॐस्थूलकर्णाय नम:-कंठं पू०॥(कंठ)
ॐस्कंदाग्रजाय नम:-स्कंधौ पू०॥(खांदे)
ॐपाशहस्ताय नम:-हस्तौ पू०॥(हात)
ॐगजवक्त्राय नम:-वक्त्रं पू०॥(मुख)
ॐविघ्नहत्रे नम:-ललाटं पू०॥(कपाळ)
ॐसर्वेश्वराय नम:- शिर:पू०॥(मस्तक)
ॐगणाधिपाय नम:-सर्वांगं पूजयामि॥
(सर्वांग)

श्रीगणेशास विविध पत्री अर्पण कराव्यात
अथ पत्र पूजा:-
ॐसुमुखायनम:-मालतीपत्रं समर्पयामि॥(मधुमालती)
ॐगणाधिपायनम:-भृंगराजपत्रं॥(माका)
ॐउमापुत्रायनम:-बिल्वपत्रं॥(बेल)
ॐगजाननायनम:-श्वेतदूर्वापत्रं॥(पांढ-यादूर्वा)
ॐलंबोदरायनम:-बदरीपत्रं॥(बोर)
ॐहरसूनवेनम:-धत्तूरपत्रं॥(धोत्रा)
ॐगजकर्णकायनम:-तुलसीपत्रं॥(तुळस)
ॐवक्रतुंडायनम:-शमीपत्रं॥(शमी)
ॐगुहाग्रजायनम:-अपामार्गपत्रं॥(आघाडा)
ॐएकदंतायनम:-बृहतीपत्रं॥(डोरली)
ॐविकटायनम:-करवीरपत्रं॥(कण्हेरी)
ॐकपिलायनम:-अर्कपत्रं॥(मांदार)
ॐगजदंतायनम:-अर्जुनपत्रं॥(अर्जुनसादडा)
ॐविघ्नराजायनम:-विष्णुक्रांतापत्रं॥(विष्णुक्रांत)
ॐबटवेनम:-दाडिमपत्रं॥(डाळिंब)
ॐसुराग्रजायनम:-देवदारुपत्रं॥(देवदार)
ॐभालचंद्रायनम:-मरुपत्रं॥(पांढरा मरवा)
ॐहेरंबायनम:-अश्वत्थपत्रं॥(पिंपळ)
ॐचतुर्भुजायनम:-जातीपत्रं॥(जाई)
ॐविनायकायनम:-केतकीपत्रं॥(केवडा)
ॐसर्वेश्वरायनम:-अगस्तिपत्रं॥(अगस्ति)

श्रीगणेशास धूप,अगरबत्ती ओवाळावी
ॐवनस्पतिरसोद्भूतो गंधाढ्यो गंधउत्तम:।
आघ्रेय:सर्वदेवानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशास दीप,निरांजन ओवाळावे
ॐआज्यंच वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश सर्वक्षेमसमर्थ भो:॥

श्रीगणेशास नैवेद्य,प्रसाद समर्पण करावा
ॐशर्कराखंडखद्यानी दधिक्षीरघृतानिच।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीगणेशास विडा अर्पण ॐकरावापूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतं।
कर्पूरैलासमायुक्तं तांबूलं प्रतिगृह्यताम्॥

श्रीगणेशाच्या समोरील विड्यावर दक्षिणा ठेवावी
ॐहिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:।
अनंतपुण्यफलद मत:शातिं प्रयच्छ मे॥
श्रीगणेशाच्या समोरील नारळावर पळीभर पाणी सोडावे आणि त्यावर एक फुल वहावे
ॐइदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सुफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि॥
खालीलप्रमाणे श्रीगणेशास दोन-दोन दुर्वा वहाव्यात
दूर्वायुग्म पूजा-
ॐ गणाधिपायनम:-दूर्वायुग्मं समर्पयामि॥
ॐ उमापुत्रायनम:-दूर्वायुग्मं ०॥
ॐ अघनाशनायनम:-दूर्वायुग्मं ०॥
ॐ विनायकायनम:-दूर्वायुग्मं ०॥
ॐ ईशपुत्रायनम:-दूर्वायुग्मं०॥
ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकायनम:-दूर्वायुग्मं ०॥
ॐ एकदंतायनम:-दूर्वायुग्मं ०॥
ॐ इभवक्त्रायनम:-दूर्वायुग्मं ०॥
ॐ आखुवाहनायनम:-दूर्वायुग्मं ०॥
ॐ कुमारगुरवेनम:-दूर्वायुग्मं ०॥

श्रीगणेशाची आरती करावी
स्वतः भोवती प्रदक्षिणा करावी
ॐयानि कानि च पापानि जन्मांतरकृतानि च।
तानि तानि विनश्यंति प्रदक्षिण पदे पदे॥

श्रीगणेशास नमस्कार करावा
ॐनमस्ते विघ्नसंहर्त्रे नमस्ते ईप्सितप्रद।
नमस्ते देवदेवेश नमस्ते गणनायक॥

श्रीगणेशाची प्रार्थना करावी
ॐविनायकगणेशान सर्वदेवनमस्कृत।
पार्वतीप्रिय विघ्नेश मम विघ्नान्निवारय॥

एक पळीभर पाणी ताकह्मणात सोडावे
ॐअनेन मया यथाज्ञानेन कृत पूजनेन तेन श्रीसिद्धिविनायक:प्रीयताम्॥

||श्रीगणेशार्पणमस्तु|।